Madhu varma

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लेखनी कविता -बीती विभावरी जाग री -जयशंकर प्रसाद

बीती विभावरी जाग री -जयशंकर प्रसाद


बीती विभावरी जाग री!
 अम्बर पनघट में डुबो रही-
 तारा-घट ऊषा नागरी।

 खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
 लो यह लतिका भी भर ला‌ई-
 मधु मुकुल नवल रस गागरी।

 अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए-
 तू अब तक सो‌ई है आली!
 आँखों में भरे विहाग री।

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